भारत में सर्वश्रेष्ठ आईवीएफ (IVF) केंद्र

फर्टी नेस्ट, भारत का प्रमुख आईवीएफ केंद्र, आपके मातृत्व के सपनों को साकार करने के लिए समर्पित है। अत्याधुनिक तकनीक और अनुभवी विशेषज्ञों की टीम के साथ, हम उच्चतम गुणवत्ता की प्रजनन उपचार सेवाएं प्रदान करते हैं। फर्टी नेस्ट में, हम प्रत्येक मरीज के लिए व्यक्तिगत और व्यापक देखभाल सुनिश्चित करते हैं, जिससे आपके उपचार का हर चरण सुरक्षित और सफल हो सके। हमारी सेवाओं में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF), इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI), डोनर एग और स्पर्म सेवाएं, सरोगेसी, और प्रजनन संरक्षण शामिल हैं। हमारा उद्देश्य आपके प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर बनाना और आपको माता-पिता बनने के आपके सपने को पूरा करने में सहायता करना है। फर्टी नेस्ट में, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि आपके उपचार के दौरान आपको भावनात्मक और शारीरिक सहायता मिले, जिससे आपका अनुभव सहज और आरामदायक हो। आइए, हमारे साथ एक स्वस्थ और खुशहाल परिवार की शुरुआत करें। फर्टी नेस्ट - आपके विश्वास का साथी, आपके मातृत्व की यात्रा में।

आईवीएफ (IVF) क्या है।

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF), जिसे आमतौर पर आईवीएफ कहा जाता है, एक प्रकार की सहायक प्रजनन तकनीक है जिसका उपयोग दंपतियों को गर्भधारण में सहायता करने के लिए किया जाता है। आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान, महिला के अंडाणुओं को उसके अंडाशय से निकाला जाता है और उन्हें प्रयोगशाला में पुरुष के शुक्राणु के साथ निषेचित किया जाता है। सफल निषेचन के बाद, विकसित भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है, जिससे गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।

आईवीएफ प्रक्रिया के प्रमुख चरण

1. ओवेरियन स्टिमुलेशन:इस चरण में, महिला को अंडाणु उत्पादन को उत्तेजित करने के लिए हार्मोनल दवाइयां दी जाती हैं। यह कई अंडाणुओं के विकास को सुनिश्चित करता है, जिससे सफलता की संभावना बढ़ती है।

2. अंडाणु पुनर्प्राप्ति:जब अंडाणु पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं, तो उन्हें अल्ट्रासाउंड मार्गदर्शन के तहत सुई की सहायता से अंडाशय से निकाला जाता है।

3. निषेचन:प्रयोगशाला में, अंडाणुओं को शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है या ICSI तकनीक का उपयोग करके सीधे अंडाणु में एक शुक्राणु इंजेक्ट किया जाता है।

4. भ्रूण विकास:निषेचित अंडाणुओं को कुछ दिनों तक इनक्यूबेटर में रखा जाता है, जहां वे विभाजित होकर भ्रूण में विकसित होते हैं।

5. भ्रूण प्रत्यारोपण:सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाले भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस चरण के बाद, महिला को आराम करने की सलाह दी जाती है और लगभग दो सप्ताह बाद गर्भधारण की पुष्टि के लिए एक गर्भावस्था परीक्षण किया जाता है।

आईवीएफ (IVF) कब उपयोगी है?

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) एक प्रमुख सहायक प्रजनन तकनीक है जो विभिन्न प्रकार की प्रजनन समस्याओं के समाधान के लिए उपयोगी है। यहाँ कुछ स्थितियाँ दी गई हैं जहाँ आईवीएफ प्रक्रिया लाभकारी हो सकती है:

1. फॉलोपियन ट्यूब में रुकावट या क्षति: जब महिला की फॉलोपियन ट्यूब में रुकावट या क्षति होती है, तो अंडाणु और शुक्राणु का मिलन प्राकृतिक रूप से नहीं हो पाता। इस स्थिति में आईवीएफ एक प्रभावी समाधान है क्योंकि इसमें अंडाणु और शुक्राणु को प्रयोगशाला में निषेचित किया जाता है और भ्रूण को सीधे गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

2. पुरुष बांझपन: जब पुरुष के शुक्राणु की संख्या कम होती है या शुक्राणु की गति कम होती है, तो आईवीएफ प्रक्रिया में इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) का उपयोग किया जा सकता है। इसमें एक शुक्राणु को सीधे अंडाणु में इंजेक्ट किया जाता है, जिससे निषेचन की संभावना बढ़ जाती है।

3. अज्ञात कारणों से बांझपन: कई दंपतियों में बांझपन का कोई स्पष्ट कारण नहीं होता। इन मामलों में, आईवीएफ एक सफल विकल्प हो सकता है क्योंकि यह अंडाणु और शुक्राणु के मिलन को नियंत्रित और अनुकूलित करने में मदद करता है।

4. एंडोमेट्रियोसिस: एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें गर्भाशय के बाहर एंडोमेट्रियम टिश्यू का विकास होता है। यह स्थिति गर्भधारण को प्रभावित कर सकती है। आईवीएफ इस स्थिति में लाभकारी हो सकता है क्योंकि यह अंडाणु और शुक्राणु को सीधे निषेचित कर सकता है।

5. आनुवंशिक विकार: यदि दंपति को यह चिंता है कि उनके बच्चे को किसी आनुवंशिक विकार का जोखिम है, तो आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (PGD) का उपयोग किया जा सकता है। इससे स्वस्थ भ्रूण का चयन किया जा सकता है।

6. सरोगेसी: जब महिला किसी कारणवश गर्भधारण नहीं कर सकती या गर्भावस्था को पूर्ण अवधि तक नहीं ले जा सकती, तो आईवीएफ का उपयोग सरोगेसी के साथ किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में भ्रूण को सरोगेट मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

आईवीएफ (IVF) के लाभ

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) एक सहायक प्रजनन तकनीक है जिसने कई दंपतियों के लिए माता-पिता बनने का सपना साकार किया है। आईवीएफ की प्रक्रिया और तकनीक की उन्नति के कारण इसके कई महत्वपूर्ण लाभ हैं। यहाँ आईवीएफ के कुछ प्रमुख लाभों का विवरण दिया गया है:

1. विभिन्न प्रजनन समस्याओं का समाधान: आईवीएफ उन दंपतियों के लिए एक प्रभावी समाधान है जो विभिन्न प्रजनन समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसमें महिला के फॉलोपियन ट्यूब में रुकावट, पुरुष बांझपन, अज्ञात कारणों से बांझपन, एंडोमेट्रियोसिस, और आनुवंशिक विकार शामिल हैं।

2. उच्च सफलता दर: आईवीएफ की सफलता दर अन्य प्रजनन उपचारों की तुलना में अधिक है। यह विशेष रूप से उन मामलों में सहायक है जहां अन्य उपचार विधियाँ सफल नहीं हो पाती हैं। सही केंद्र और विशेषज्ञों के साथ, आईवीएफ की सफलता दर बढ़ाई जा सकती है।

3. आनुवंशिक परीक्षण का विकल्प: आईवीएफ प्रक्रिया में प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (PGD) और प्रीइम्प्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग (PGS) जैसे विकल्प उपलब्ध हैं, जो भ्रूण के आनुवंशिक विकारों का पता लगाने में मदद करते हैं। इससे स्वस्थ भ्रूण के चयन की संभावना बढ़ जाती है।

4. नियंत्रित गर्भधारण: आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से, दंपति गर्भधारण के समय और योजना को नियंत्रित कर सकते हैं। यह उन दंपतियों के लिए विशेष रूप से सहायक है जो अपने कैरियर या अन्य व्यक्तिगत कारणों से गर्भधारण को स्थगित करना चाहते हैं।

5. डोनर अंडाणु और शुक्राणु का उपयोग: आईवीएफ प्रक्रिया में डोनर अंडाणु और शुक्राणु का उपयोग संभव है, जो उन दंपतियों के लिए लाभकारी है जिनमें अंडाणु या शुक्राणु की गुणवत्ता या संख्या में कमी है। इससे उनकी गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।

6. सरोगेसी का विकल्प: आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से, दंपति सरोगेसी का विकल्प भी चुन सकते हैं। यह उन दंपतियों के लिए सहायक है जो किसी कारणवश खुद गर्भधारण नहीं कर सकते।

7. प्रजनन संरक्षण: आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से, महिलाएं और पुरुष अपने अंडाणु और शुक्राणु को भविष्य के लिए संरक्षित कर सकते हैं। यह विशेष रूप से कैंसर उपचार या अन्य स्वास्थ्य स्थितियों के लिए सहायक है जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।

आईवीएफ (IVF) प्रक्रिया

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) एक जटिल और अत्याधुनिक सहायक प्रजनन तकनीक है जिसका उपयोग दंपतियों को गर्भधारण में सहायता करने के लिए किया जाता है। यहाँ आईवीएफ प्रक्रिया के विभिन्न चरणों का विवरण दिया गया है:

1. ओवेरियन स्टिमुलेशन (Ovarian Stimulation)

इस चरण में, महिला को हार्मोनल दवाइयाँ दी जाती हैं जो अंडाशय को कई अंडाणु उत्पन्न करने के लिए उत्तेजित करती हैं। ये दवाइयाँ फॉलिकल्स-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (FSH) और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH) हो सकती हैं।

  • उद्देश्य: अंडाशय से एक से अधिक अंडाणु उत्पन्न करना, जिससे निषेचन के लिए अधिक अंडाणु उपलब्ध हो सकें।
  • निगरानी: अल्ट्रासाउंड और रक्त परीक्षण के माध्यम से अंडाणुओं के विकास की निगरानी की जाती है।

2. अंडाणु पुनर्प्राप्ति (Egg Retrieval)

जब अंडाणु पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं, तो उन्हें अंडाशय से निकाला जाता है। यह प्रक्रिया एक मामूली शल्यक्रिया है जिसे ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाउंड मार्गदर्शन के तहत किया जाता है।

  • प्रक्रिया: एक सुई को अंडाशय में डाला जाता है और अंडाणुओं को एक छोटे सक्शन डिवाइस के माध्यम से निकाला जाता है।
  • एनेस्थीसिया: प्रक्रिया के दौरान हल्की बेहोशी (sedation) दी जाती है ताकि महिला को दर्द का अनुभव न हो।

3. निषेचन (Fertilization)

निकाले गए अंडाणुओं को प्रयोगशाला में शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है। निषेचन के दो मुख्य तरीके हैं:

  • क्लासिकल आईवीएफ: अंडाणु और शुक्राणु को एक पेट्री डिश में मिलाया जाता है और निषेचन प्राकृतिक रूप से होता है।
  • इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI): एक एकल शुक्राणु को सीधे अंडाणु में इंजेक्ट किया जाता है, जो उन मामलों में उपयोगी है जहां शुक्राणु की गुणवत्ता या संख्या कम होती है।

4. भ्रूण विकास (Embryo Development)

निषेचित अंडाणु (अब भ्रूण) को कुछ दिनों के लिए इनक्यूबेटर में रखा जाता है, जहाँ वे विभाजित होकर एक मल्टीसेलुलर संरचना में विकसित होते हैं।

  • निगरानी: भ्रूण के विकास की निगरानी की जाती है और सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले भ्रूण को चयनित किया जाता है।

5. भ्रूण प्रत्यारोपण (Embryo Transfer)

सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता वाले भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

  • प्रक्रिया: एक पतली कैथेटर का उपयोग करके भ्रूण को गर्भाशय में डाला जाता है।
  • गर्भधारण की पुष्टि: प्रत्यारोपण के लगभग दो सप्ताह बाद, एक गर्भावस्था परीक्षण किया जाता है यह देखने के लिए कि क्या भ्रूण सफलतापूर्वक गर्भाशय की दीवार से चिपक गया है और विकासशील है।

6. ल्यूटियल फेज सपोर्ट (Luteal Phase Support)

प्रत्यारोपण के बाद, महिला को प्रोजेस्टेरोन की दवाइयाँ दी जाती हैं ताकि गर्भाशय की परत को मजबूत किया जा सके और गर्भावस्था को सहारा मिल सके।

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फर्टी नेस्ट आपके प्रजनन यात्रा के हर चरण में आपके साथ खड़ा है, एक विश्वसनीय और प्रभावी प्रजनन केंद्र के रूप में। यहाँ कुछ प्रमुख कारण हैं कि क्यों फर्टी नेस्ट को चुनना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है:

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फर्टी नेस्ट में आधुनिक और नवीनतम तकनीक का उपयोग किया जाता है, जिससे आपकी प्रजनन समस्याओं का समाधान अधिक प्रभावी और सुरक्षित तरीके से किया जा सकता है।

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हमारी टीम में अनुभवी और योग्य प्रजनन विशेषज्ञ, भ्रूण विज्ञानी, और नर्सें शामिल हैं, जो आपको व्यक्तिगत और समर्पित देखभाल प्रदान करते हैं।

सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) एक प्रकार की सहायक प्रजनन तकनीक है जिसमें महिला के अंडाणुओं को उसके अंडाशय से निकालकर पुरुष के शुक्राणु के साथ प्रयोगशाला में निषेचित किया जाता है। निषेचित अंडाणु (भ्रूण) को फिर से महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

  • फॉलोपियन ट्यूब में रुकावट या क्षति
  • पुरुष बांझपन (शुक्राणु की कम गिनती या गुणवत्ता)
  • एंडोमेट्रियोसिस
  • अज्ञात कारणों से बांझपन
  • आनुवंशिक विकारों की रोकथाम
  • पिछले प्रजनन उपचारों में विफलता

आईवीएफ की सफलता दर कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे महिला की आयु, बांझपन का कारण, प्रयोगशाला की गुणवत्ता, और चिकित्सा विशेषज्ञता। सामान्यतः, 35 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में आईवीएफ की सफलता दर लगभग 60-80% होती है, जबकि 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में यह दर घटकर 50-60% हो जाती है।

पूरी आईवीएफ प्रक्रिया को पूरा करने में आमतौर पर 4 से 6 सप्ताह लगते हैं। इसमें प्रारंभिक परामर्श, ओवेरियन स्टिमुलेशन, अंडाणु पुनर्प्राप्ति, निषेचन, भ्रूण विकास, और भ्रूण प्रत्यारोपण शामिल हैं। हर चरण में निगरानी और चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है।

हाँ, आईवीएफ प्रक्रिया में कुछ जोखिम होते हैं, जैसे:
  • ओवेरियन हाइपरस्टिमुलेशन सिंड्रोम (OHSS)
  • एकाधिक गर्भधारण (ट्विन्स, ट्रिपलेट्स)
  • गर्भपात का जोखिम
  • संक्रमण या रक्तस्राव
  • मानसिक और भावनात्मक तनाव

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